yatra

Monday, November 23, 2009

रास्ता देखता मैं

जब कभी भी अपने से छोटे आदमी से हार कर हमें समझोता करना पड़ा हो तब जैसी मन की स्थिति होती है आज कुछ वैसी ही है. हम अपने से जुड़ने वाले माह्तत /छोटे को वो जो अंग्रेजी मैं कहते हैं take it for granted लेते हैं और जब वो नहीं होता तो.....बता कर गया तो ठीक ......और बिना बताये हमारे पाससे चला गया तो......कैसे तिलमिला जाते हैं ...क्या कभी सोचते हैं की हमारे रवैये से भी क्या उसे तिलमिलाहट नहीं होती होगी ...बस पेट या छोटे होने की मज़बूरी मैं वो कह नहीं पाता और हम कुछ सुनने और समझने की कोशिश नहीं करते . घर की कामवाली, दुकान का नौकर, ऑफिस का चपरासी ,accountant , ड्राईवर , छोटी बहिन भाई बेटी और बेटा और पत्न्नी भी तो ......हमें सब की जरुरत है ...हमें सब का ख्याल भी रखना है पैसे,लाभ,अपने काम की तरह... वे सभी हमारे asset हैं ..उनके बिना हमारा अस्तित्व नहीं है .....
मेरे petrol pump का कुछ स्टाफ घर चला गया है वाकई वो अच्छा था और मैं नासमझ .....उन्हें अपने से जोड़ नहीं पाया .....उनकी कोशिशें तो पूरी थीं ..... पर मेरे पास वक़्त ही कहाँ था..... उनकी कोशिशों को देखने का ...आज देख रहा हूँ वो सब ................और उनके वापस लौटने का रास्ता ...

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खुदा hafiz

विकास शुक्रिया तुम ने
ठीक कहा यात्रा मैं शायद आगे ध्यान रख पायें