yatra

Wednesday, June 27, 2012

कहाँ से दिन गुजरा किधर को रात गयी .
.......बहुत मुश्किल से अपनी बात गयी ..
कभी सकूँ की शक्ल देखी  होती तो शायद उसे पकड़ कर या उसके 
पैर पकड़ का बैठ  गए होते


हर रात कुछ सिक्कों को गिन के  सोता हूँ 
हर एक रात कुछ रिश्तों  को खो के रोता हूँ 




सुमति