अब कहाँ मिलता है जन्नत का नज़ारा
बहुत मुश्किल में, ज़मीं का ये सिरा है।
ये दो लाइने पुरे वक़्त जहन में घूमती रहीं . सब कुछ तयशुदा था। एयर टिकिट ,इन्नोवा टैक्सी आर्मी गेस्ट हाउस आगे होटल पहलगाम,होटल ललित ग्रांड ,शिकारा और हमारी टैक्सी का ड्राइवर राजा,,,,,,,,,,,,,, बस जो तय नहीं थी वो कश्मीर की फ़िज़ा। हम महफ़ूज़ गए और महफ़ूज़ रहे पर ये ख्याल की यहाँ महफ़ूज़ बने रहने की जरुरत है बस यूँ मानिए कि हमारे कश्मीर दौरे में खलल डाल रहा था। मजाक है क्या ,,,,अपने ही मुल्क में अपने ही हिस्से में एक दहशत लिए जाना और एक कसक के साथ वापस आना … साल २०१२ की ही तो बात है
रास्ते भर मेरा मन जैसे कुछ देखने को नहीं कर रहा था बस हर पल जहन मे कोई न कोई सवाल उठ रहा था और पूंछने को ले दे के हमारा ड्राइवर राजा ही बचता था कई सवाल ऐसे थे की पूंछ भी नहीं सका …मसलन
तुमको कभी किसी ने so called जिहाद के लिए कहा … इसके लिए कोई कैसे तैयार हो जाता है। … क्या पाकिस्तान गए हो …… घुसपैठिये क्या लालच दे कर तुम लोगों के बीच जगह बना लेते हैं। .... गर दो ही रस्ते हों हिंदुस्तान या पाकिस्तान तो तुम लोग किधर जाना पसंद करोगे वो क्यूँ ?
रात हमारी आर्मी बेस में होती और दिन कश्मीरियों के बीच दोनों जगह बिलकुल अलग सी सोच समझ और नजरिया देखने को मिल रहा था हम कहते हैं की दोनों ही एक मुल्क के लोग हैं जाहे फौजी हो या कश्मीरी पर जन्नत में दोनों अलग अलग पाले में खड़े दिख रहे थे.
जाओ सो जाओ
और बिस्तर पर
अपने जहन को
सोता हुआ छोड़ कर चुपचाप चले आना
हम तुम्हे आजादी देंगे ख्वाब
बोने की
(अधूरे ) । सुमति